सुशांत की आखिरी फिल्म ने रचा इतिहास, तोड़े कई रिकॉर्ड, फैंस हुए भावुक

मुंबई 14 जून को अपने मुंबई स्थित फ्लैट में अचानक से फांसी लगाकर खुदकुशी करने के बाद हम सब को अलविदा कह गए बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की अंतिम फिल्म दिल बेचारा ने शुक्रवार को रिलीज होते ही इतिहास रच दिया। डिज्नी हॉटस्टार पर सुशांत की इस फिल्म को IMDb रेटिंग 10 में से 10 मिली है जो किसी भी भारतीय फिल्म की टॉप रेटिंग है।हालांकि, बाद में इसकी रेटिंग 9.8 ही रही है।

दरअसल दिल बेचारा ने IMDb रेटिंग में कमल हसन और आर माधवन की तमिल फिल्म Anbe Sivam का भारतीय रिकॉर्ड तोडा है। एक तरफ जहाँ कल सुशांत के फिल्म की धूम रही वहीँ दूसरी तरफ हॉटस्टार क्रैश होने के वजह से यूजर्स को काफी दिक्कत का सामना भी करना पड़ा। सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म को दर्शकों का बहुत प्यार मिला वहीँ इस फिल्म में उनके एक्टिंग की काफी सराहना की गई।

आइये अब नजर डालते हैं इस मूवी के रिव्यु पर

फिल्म :- दिल बेचारा

किरदार: सुशांत सिंह राजपूत, संजना संघी, शास्वत चटर्जी, संजना मुखर्जी

संगीत :- ए आर रहमान, अमिताभ भट्टाचार्य

पटकथा लेखन: शशांक खेतान, सुप्रोतिम सेनगुप्ता

“दी फाल्ट इन ऑवर स्टार” की तर्ज पर ही बनी सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी दिल बेचारा पूरी तरह से आपके देखने के नजरिए पर निर्भर करेगी। इस फिल्म में रोमांस है, कॉमेडी है, दर्द है और इसके साथ ही कुछ अच्छे डायलॉग्स। फिल्म को ना ज्यादा बातूनी बनाया गया है और ना ही इसमें एक्शन का तड़का मारा गया है। कहानी गंभर बीमारी से जूझ रहें दो लोगों के बीच घूमती नजर आती है। जिनके अपने सपने हैं, ख्वाहिशें हैं और एक अधूरे गाने को पूरा करने की इच्छा भी। जिसकी खोज में किरदार पेरिस तक का सफर करते हैं। करीबन 2 घंटे की फिल्म आप को बांधे रखने का प्रयास करती है। बीच-बीच में अच्छे डायलॉग्स की कमी की वजह से पटकथा उबाऊ लगती है। एक तरफ जहां सुशांत(एमानुएल जूनियर) की एक्टिंग ने इस फिल्म में जान डालने की कोशिश की है।वही संजना संघी (कीजी बसु) को देखकर लगता है कि सुशांत की एनर्जी के साथ उन्हें अपनी अदाकारी में काफी समझौता करना पड़ा है। हालांकि सास्वत चटर्जी और स्वस्तिका मुखर्जी अपने किरदार में काफी सधे हुए नजर आ रहे है। बिहारी किरदार में साहिल वेद भी किरदार में जहां अपने रंग छोड़ते नजर आते हैं। वहीं सैफ अली खान अपने कुछ ही मिनट के किरदार से दर्शकों का नजर खींचने में सफल रहे।

हालांकि डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा के निर्देशन में बनी यह पहली फिल्में जिसकी झलक आपको फिल्म के शुरुआत से अंत तक नजर आएगी। इस फिल्म में संवादों का अभाव नजर आता है। हालांकि कहानी और शब्दों का चयन काफी सरल है जो किसी भी वर्ग के लोगों को आसानी से समझ में आ सकते हैं। ए आर रहमान और अमिताभ भट्टाचार्य ने पटकथा के मुताबिक काम चलाऊ संगीत से फिल्म को साधने की कोशिश की है।

हालांकि इस फिल्म की सबसे अच्छी खासियत ये रही कि इसमें सीन आपकी नजरों के सामने से जल्दी-जल्दी नहीं गुजरते है। इस फिल्म को इस तरह फिल्माने की कोशिश की गई है जहां आप कुछ देर उसके साथ बिता सकते हैं। इस फिल्म में बेहतरीन संपादन की पूरी कोशिश के बावजूद कई तरह की खामियां नजर आती है। फिल्म के अंत को अधूरा रखा गया है।

“दिल बेचारा” जहां एक तरफ अधूरे सपने को पूरा करने पर जोर देती है वहीं दूसरी तरफ जिंदगी को संजोकर रखने का समर्थन करती है। किरदारों की जिंदादिली जाए एक पल आपको हंसाती है। वहीं दूसरी पल रोने को मजबूर कर देती है। कुछ सटीक डायलॉग और कुछ अच्छे सीन फिल्म की पटकथा को सुदृढ़ कर सकते थे।कई जगह फिल्म में आपको एक अधूरापन नजर आता है। हालांकि सुशांत सिंह राजपूत सहित अन्य किरदारों ने अपने अपने स्तर से उसे भरने की कोशिश की है।

आखिर में बस यही कि सुशांत जैसे अभिनेता के लिए, उनके स्तर की एनर्जी के साथ यह फिल्म वास्तविक न्याय नहीं कर पाई है। किंतु यदि आप इसे संवेदना, सुशांत की आखिरी फिल्म के चश्मे से देखेंगे तो सुशांत का किरदार जीवंत नजर आता है। जैसे वो असल जिंदगी में कर गए हैं। इसमें उन्होंने जिंदगी को जीने की, सपनों को पूरे करने की बातों पर जोर दिया है। आप भी उसकी ही कोशिश करें। बाकि सुशांत सितारों के बीच रहेंगे और हम उनके निभाए किरदारों के।

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