विज्ञान के वो खौफनाक प्रयोग जो खत्म कर सकते थे, पूरी दुनिया
आज के समय में साइंस ने अपनी पकड़ काफी हद तक मजबूत कर ली है। प्रकृति को लगातार पीछे छोड़ने की कोशिश में विज्ञान अपनी कोशिश में लगा है। 1970 में शीत युद्ध के दौरान अमेरिका को चुनौती देने के लिए रूस ने धरती के बीचो-बीच इतना गहरा गड्ढा किया, जिसने पूरी दुनिया को अंदर तक हिला कर रख दिया था। इसे कोला सुपरडीप बोरहोल के नाम से जाना जाने लगा मानवजाति द्वारा खोदा गया यह सबसे गहरा गड्ढा है।
इसकी खुदाई में 19 साल का समय लगा कड़ी मेहनत के बाद भी धरती के अंदर केवल 12 किलोमीटर का ही गड्ढा खोदा जा सका था। धरती के अंदर की जाने वाली इस खुदाई के दौरान एक ऐसा समय भी आया, जब इंसान द्वारा बनाई हुई मशीन भी फेल हो गई थी।
जमीन के अंदर का तापमान 180 डिग्री सेल्शियस था, जो किसी इंसान तो क्या मशीन तक को जलाकर राख करने के लिए काफी था लेकिन दो देशों के बीच खुद को श्रेष्ठ दिखाने की होड़ के तहत शुरू हुई ये कोशिश पूरी मानव जाति के लिए कितना विनाशकारी हो सकता था इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। धरती के अंदर इतनी गहराई में ढेर सारा पानी मौजूद है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां पत्थर के रूप में मौजूद खनिज पदार्थ नीचे स्थित ऑक्सीजन और हाइड्रोजन अणुओं को दबाकर पानी निकाल देते हैं।
धरती के इतनी गहराई में तापमान करीब 350 डिग्री फॉरेनहाइट तक होता है, जो मनुष्य द्वारा झेल पाना नामुमकिन है। इस प्रयोग को लेकर कुछ एक्सपर्ट्स का मानना था कि पृथ्वी की ऊपरी तह में इससे ज्यादा खुदाई की गई तो ये धरती का संतुलन बिगाड़ सकती है, जिसके बाद भूकंप की स्थिति भी पैदा हो सकती है।
9 जुलाई 1962 को यूनाइटेड स्टेट्स ने पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड के पास 6 न्यूक्लियर बम धमाके किए इस प्रोजेक्ट का नाम रखा गया स्टारफिश प्राइम इन धमाकों के दुष्प्रभाव के तौर पर पृथ्वी के वायुमंडल में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स, जिसे आम तौर पर EMP कहा जाता है, इस पल्स से निकलने वाले रेडिएशन से रास्ते में आने वाली हर इलेक्ट्रोनिक वस्तु नष्ट हो जाती है।
साल 1944-1955 के मध्य में न्यूज़ीलैंड के वैज्ञानिकों ने बम धमाका कर समुद्र में आर्टिफिशियल सुनामी लाने की कोशिश की थी। उन्हें विश्वास था कि समुद्र में रणनीतिक रूप से बम रखकर अगर विस्फोट किया जाए तो जब चाहे सुनामी लाई जा सकती है, लेकिन कई हज़ार टेस्ट करने के बावजूद भी जब वैज्ञानिक इसमें सफल नहीं हो पाएं तो उन्होंने इस टेस्ट को रोक दिया था।
1940 के अंत में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने ड्राई आइस की मदद से समुद्री तूफ़ान की दिशा मोड़ने की कोशिश की थी, इसी प्रयोग के दौरान जब वैज्ञानिकों ने अटलांटिक महासागर की ओर बह रहे तूफान में 180 पाउंड का ड्राई आइस डाला तो तूफान ने एक अप्रत्याशित मोड़ ले लिया, उस तूफान ने अपना रुख जॉर्जिया शहर के सावना शहर की ओर मोड़ लिया उस वक्त शहर की जनसंख्या कम होने की वजह से केवल 1 व्यक्ति की जान गई थी।