दोनों आंख की रोशनी में अंतर हो सकता है भेंगेपन का कारण
आंखों के विशेषज्ञ डाॅक्टर विवेक के अनुसार यदि एक आंख की रोशनी ठीक है तो वो हमारे दिमार को क्लीयर इमेज भेजती है, वहीं यदि एक आंख की रोशनी कमजोर है या उससे कम दिखता है तो उस आंख से धुंधली इमेज ब्रेन तक पहुंचती है।
इसका असर यह होता है कि कुछ समय के बाद जिस आंख से धुंधली इमेज ब्रेन तक पहुंच रही थी धीरे- धीरे ब्रेन उस आंख से इमेज लेना ही बंद कर देता है। इस कारण आंखों में टेढ़ापन की समस्या आ जाती है। दो से तीन साल की उम्र के बच्चों में इस बीमारी से संबंधित लक्षण दिखने लगते हैं।
आंखों में टेढ़ापन का यदि पता चल जाता है तो सबसे पहले आंखों के पावर की जांच की जाती है। रोशनी में अंतर दिखने पर पीड़ित को चश्मा लगाया जाता है। ट्रीटमेंट का पहला स्टेप यही है। इसके कारण आंखों में टेढ़ापन/तिरछापन के कारणों का पता लगाया जाता है, जैसे कहीं यह पैदायशी तो नहीं या फिर बाद में हुआ हो। इस बीमारी को एक से दो साल की उम्र में ही पता किया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों के आंखों की भी जांच करवानी चाहिए।
ऐसे में इलाज की बात करें तो सबसे पहले चश्मा दिया जाता है। दूसरी आंखों की पैकिंग कर दूसरे कमजोर आंख से देखने के लिए बच्चे को मजबूर कर विजुअल पाथवे को सुधारा जाता है, तीसरा और अंतिम तरीका सर्जरी है। मरीज की सर्जरी कर इलाज किया जाता है। मसल्स में किसी प्रकार का इंबैलेंस है तो सर्जरी कर उसे ठीक किया जाता है। वहीं मौजूदा समय में कई लोग विजन थैरपी के द्वारा भी इलाज करते हैं, जिसके अंतर्गत कई एक्सरसाइज, थैरेपी के द्वारा आंखों के भेंगेपन या तिरछापन को ठीक करने की कोशिश की जाती है। ऐसे में जरूरी है कि चार साल की उम्र तक बच्चों के आंखों की जांच जरूर करवानी चाहिए।