पितृ पक्ष में श्राद्ध के क्या नियम होते हैं?
1.पितृ पक्ष में पितरों के श्राद्ध में सदैव ही गाय का दूध,दही व घी काम में लेना चाहिए। क्योंकि गाय को हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा पवित्र माना जाता है और सभी शुभ कामों में गाय का दूध ही काम आता है।
2.पितृ पक्ष में श्राद्ध में अगर चांदी के बर्तनों का उपायोग किया जाए तो काफी शुभ होता है। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं। यदि आपके पास सभी बर्तन चांदी के न हो तो कम से कम एक बर्तन तो चांदी का अवश्य ही होना चाहिए।
3.श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन अवश्य ही कराएं क्योंकि बिना ब्राह्मणों को भोजन कराए आपका श्राद्ध कर्म पूर्ण नही हो सकता। इसलिए श्राद्ध के दिन कम से कम एक ब्राह्मण को तो अवश्य ही भोजन कराएं।
4.श्राद्ध में आप जो भी भोजन ब्राह्मण को परोसे उसे दोनों हाथों से परोसे क्योंकि एक हाथ से परोसा गया भोजन राक्षस छीन लेता है। इसलिए भोजन परोसते समय अपने दोनों हाथों का प्रयोग करें।
5.श्राद्ध को भोजन करते समय ब्राह्मणों को भोजन मौन एवं भोजन की प्रशंसा किए बगैर ही करना चाहिए क्योंकि पितृ तब तक ही भोजन करते हैं। जब तक ब्राह्मण मौन रहते हैं।
6.श्राद्ध में आप जो भी भोजन बनाए वह सादा ही बनाए ज्यादा मसालेदार भोजन न बनाएं और पितरों की पसंद का भोजन बनाने की ही कोशिश करें।
7.श्राद्ध हमेशा अपने ही घर में करना चाहिए क्योंकि किसी और के घर में किया श्राद्ध हमारे पूर्वजों को नहीं लगता और इससे हम पाप के भागीदार बनते हैं। घर के अलावा श्राद्ध मंदिर या किसी तीर्थ स्थान पर भी किया जा सकता है।
8.पितरों का श्राद्ध करते समय उचित ब्राह्मण का चुनाव करें जिसे धर्म शास्त्र का अच्छी तरह से ज्ञान हो। क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है।
9.पितरों के श्राद्ध में घर के दामाद, बेटी, नाती या नातिन को जरूर बुलाएं। क्योंकि ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। जो लोग ऐसा नहीं करते उनके यहां पितृ तो क्या देवता भी भोजन ग्रहण नही करते हैं।
10.श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी घर पर आ जाए तो उसे भोजन कराए बिना न जाने दें। जो व्यक्ति श्राद्ध के समय घर आने वाले को भोजन नही कराता उसे श्राद्ध के पूर्ण फल प्राप्त नही होते हैं।
11 श्राद्ध का भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को आदर सहित विदा करें क्योंकि उन ब्राह्मणों के साथ पितर भी चलते हैं। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही घर के अन्य सदस्यों को भोजन कराएं।
12.श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। यदि कोई नीच या साधारण व्यक्ति पिंडदान को देख ले तो वह श्राद्ध पितरों तक नही पहुचंता।