गंगाजल में कीड़े क्यों नहीं लगता ? जानिए वजह

लगभग एक सौ तीस साल पहले, ब्रिटिश डॉक्टर एमई हैंकिन ने गंगा जल पर वैज्ञानिक परीक्षण किया था। उन्होंने पाया कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की अद्भुत क्षमता होती है। उन्होंने कालरा के जीवाणु को गंगा जल में और कुछ समय बाद कालरा के जल को गंगा जल में डाल दिया। बैक्टीरिया नष्ट हो गए।

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक डॉ. चंद्रशेखर नौटियाल ने एक शोध में साबित किया कि गंगा के पानी में रोग पैदा करने वाले ई. कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता अभी भी बरकरार है।

उन्होंने इस चमत्कारी तत्व को गंगा के जल से अलग करने का प्रयास किया। उन्होंने गंगा के पानी को एक ऐसी महीन झिल्ली से छान लिया जिसमें हर तरह के विषाणुओं को अलग करने की क्षमता थी। इसके बाद भी गंगाजल में बैक्टीरिया को मारने वाले तत्व मौजूद थे।

डॉ. नौटियाल का कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है।

वहीं आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर देवेंद्र स्वरूप भार्गव का कहना है कि गंगा को स्वच्छ रखने वाला यह अनूठा तत्व गंगा के तल पर हर जगह मौजूद है।

ताजा शोध में भारतीय वैज्ञानिकों ने गंगाजल को पवित्र घोषित किया है। सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ के वैज्ञानिकों ने गंगाजल पर शोध किया। जिसमें बैक्टीरियोफेज की पहचान की गई। जो बैक्टीरिया को खाता है।

IMTECH के वरिष्ठ वैज्ञानिक षणमुगम मयलाराज के अनुसार, कई बैक्टीरियोफेज नैदानिक ​​​​जांच में कार्य करते पाए गए। इसका उपयोग एमडीआर संक्रमण के उपचार में किया जा सकता है।

डॉ. मायलाराज और उनकी टीम ने ऐसे पच्चीस वायरस की पहचान की है। जिसका उपयोग तपेदिक, टाइफाइड, निमोनिया, हैजा, पेचिश मेनिन्जाइटिस सहित कई बीमारियों में किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने गंगा पर शोध के लिए IMTECh को वित्त पोषित किया था।

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