हनुमान जी के पूरे शरीर का रंग इस वजह से होता है लाल

बहुत सारे लोग ऐसे होंगे जो रामायण के सभी घटनाक्रम के बारे में नहीं जानते होंगे और बहुतों को तो राम-रावण युद्ध के बाद की घटना के बारे में कोई जानकारी ही नहीं होगी। आपलोगों ने हनुमान जी के सभी मंदिरों में हनुमान जी को देखा होगा और उनकी पूजा भी की होगी।

लेकिन क्या आपने कभी भी गौर से देखा है कि हनुमान जी के पूरे शरीर का रंग सिन्दूर (लाल-पीला) के रंग का होता है जबकि अन्य सभी भगवान के शरीर का रंग आम लोगों के शरीर के रंग जैसा ही होता है? क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों? तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर हनुमान जी के शरीर का रंग सिन्दूर के रंग जैसा क्यों होता है।

हनुमान जी के शरीर का रंग सिन्दूर जैसा क्यों होता है?

ये घटना तब की है जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके युद्ध जीत लिया और 14 वर्ष पूरे हो जाने के पश्चात् हनुमान जी के साथ अपने राज्य अयोध्या में वापस आ गए। रामायण के अनुसार, एक दिन जब भगवान हनुमान को भूख लगता है तब जब वो माता सीता के पास आते हैं तो उस समय माता सीता अपने मांग में सिन्दूर कर रही होती है।

हनुमान जी को सिन्दूर के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है तो वो उनसे पूछ बैठते हैं कि, ” माता सीता, आपने अपने सिर के बीचों-बीच ये लाल द्रव्य कैसा लगा रखा है?” तब माता सीता ने हनुमान जी के इस उत्सुकता को समझते हुए कहा कि ये अपने मांग में मैंने सिन्दूर लगा रखा है। ये हर सुहागिन स्त्रियाँ अपने मांग में लगाती हैं। इससे उसके पति को दीर्घायु मिलती है और स्वामी भी इससे प्रसन्न रहते हैं।

हालांकि, माता सीता ने स्वामी शब्द का प्रयोग अपने पति राम जी के लिए किया था लेकिन चूंकि हनुमान जी भी भगवान श्रीराम को स्वामी ही कहा करते थे इसलिए उन्होंने सोचा कि शायद स्वामी श्रीराम को सिन्दूर बहुत प्यारी हो और इसे देखकर वो खुश हो जाते हों। बस यही सोचकर उन्होंने अपने स्वामी को ज्यादा प्रसन्न करने के लिए अपने पूरे शरीर पर ही सिन्दूर लगा लिया जिससे उनका शरीर पूरी तरह से उसी रंग का हो गया।

बस फिर क्या था। इसके बाद जब वो ख़ुशी से नाचते-गाते भरे दरबार में पहुंचे तो सभी लोगों के साथ ही माता सीता और भगवान श्रीराम भी उनके इस रूप को देखकर बहुत ही हंसने लगे। तब हनुमान जी को लगा कि शायद स्वामी सचमुच में ही उनपर प्रसन्न हो गए हैं और हंसने का सही मकसद वो समझ नहीं पाए। बस तभी से भगवान श्री राम के आशीर्वाद के अनुरूप उनके शरीर का वही रंग पड़ गया और तभी से लोग उन्हें उसी रूप में जानने लगे और उनके पूजा-पाठ में उन्हें सिन्दूर भी चढाने लगे।

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