जानिए विश्व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत किसने की?
यदि हम किसी के विशेष के लिए कोई उत्सव या दिवस विशेष मनाते हैं तो इसके दो अर्थ होते हैं | प्रथम या तो हम उसे अपार श्रद्धा या प्रेम रखते हैं अथवा उसकी स्थिति ऐसी है की उसपर विशेष ध्यान की जरूरत हैं | महिलाओ के बारे में तो द्वितीय ही ज्यादा सत्य प्रतीत होता है | हमने अपने ग्रंथों में चाहे जितना लिख रखा हो महिलाओं के बारे में हमने देवियों की चाहे जितनी पूजा की हो किन्तु यह सर्वथा सत्य है की मध्यकाल में महिलाओं को भोग की एक वस्तु से अधिक नही समझा गया बस अंतर यही था की अरबी राजा उन्हें ज्यादा शिद्दत से वस्तु समझ रहे थे क्युकी उनके संस्कार ही यही थे भारतीय राजा अपने प्राचीन सभ्यता के कारण थोड़ी लज्जा रखते थे |
वैसे मेरा उद्देश्य भारतीय स्थिति के बारे में बताना नहीं है बस यूँ ही बात निकल गयी थी तो यहाँ तक आ गयी मेरा उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में बताना था, वास्तव में महिलाओं के बारे में सबसे पहले “गलती” से बात उठाई गयी १९०२ के हेग अभिसमय में | जी हाँ वो गलती से इसलिए उठाई गयी क्योकि उनसे पुरुषों के अधिकार भी जुड़े हुए थे ये विषय थे विवाह, विवाह विच्छेद तथा अवयस्कों संरक्षकता आदि | फिर से ऐसी ही गलती दोहराई गयी १९०४ के पेरिस अभिसमय में जो की श्वेत दासों के व्यापर को प्रतिबंधित करने के लिए था अब ये महिलाओं का सौभाग्य भी काह सकते हैं की श्वेत रंग की महिलाएं भी पाई जाती थी इसलिए उनके व्यापार को भी प्रतिबंधित किया गया |
पहली बार आशय पूर्वक महिलाओं के अधिकारों के लिए बात की जेनेवा अभिसमय में १९३३ में और महिलाओं के दुर्व्यपार को रोकने के लिए एक कन्वेंशन किया गया | फिर कुछ काम अमेरिकी राज्यों ने किया इस विषय पर | सौभाग्य से समय का चक्र आगे बढ़ा और संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हो गया और उसने इस विषय पर का करना प्रारम्भ कर दिया |
१९६२ में तो महासभा ने तय कर लिया की अब महिलाओ के लिए दीर्घकालिक एकीकृत योजना का निर्माण किया जायेगा | इस योजना का वास्तव में क्रियान्वयन १९६७ में प्रारम्भ हुआ | पहली बार ईरान के शहर तेहरान में पहले अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया जो की २२ अप्रैल से १३ मई तक चला | इसके बाद १८ दिसम्बर १९७२ को एक संकल्प द्वारा महासभा ने १९७५ को महिला वर्ष घोषित किया |
प्रथम विश्व सम्मेलन मेक्सिको में आयोजित किया गया १९७५ इस्वी में जहाँ पर प्रत्येक वर्ष “अंतराष्ट्रीय महिला दिवस” मनाने की घोषणा की गयी | इसी तरह द्वितीय कोपेनहेगेन में १९८० में तथा तृतीय सम्मेलन नैरोबी में १९८५ में किया गया | अंतिम तथा सबसे महत्वपूर्ण सम्मेलन ४ से १५ सितम्बर १९९५ में किया गया इसमें एक प्रस्ताव पास किया गया “दुनिया को महिलाओ की आँखों से देखिये” |
जरूरत है आज हर दुर्बल वर्ग (अमेरिकी संविधान में इन्हें लिटिल मेन कहा गया है) की नजर से दुनिया को देखने की | साहित्य विमर्श में कहा जाता है की कोई भी सशक्त वर्ग किसी निःशक्त वर्ग के विमर्श की बात निष्पक्ष रूप से नहीं कर सकता है |