सात पहाड़ियों का नगर किस शहर को कहा जाता है? तथा क्यों?

सात पहाड़ियों का शहर भारत मे है या इससे बाहर नहि पता. लेकिन भारत कै उत्तरा खण्ड राज्य मे एक जगह ऐसी है जो पवित्र है, धार्मिक है, सात शिखीरो से हिमालय कि चोटियों से घिरी है, उसे सप्तश्रृंग कहते है अर्थात सात चोटियों से घिरी हुयी जगह और उन सभी चोटियों कै मध्य एक सुरम्य, सौम्य, शीतल, सुगन्धित जल से भरि बर्फ कै पानी कि झील है जिससे एक नदी सुरसरि बहतीहियी निकलती है . यह जगह हेमकुंड कै नाम से विख्यात है. सिख धर्म का मुख्य तीर्थस्थल है. इसकी खोज एक सरदार फ़ौजी सिख सिपाही ने 1831 मे कि थी ज़ब वह यहां से निकला और उसने गुरु ग्रन्थ साहेब भी पढ़ा हुआ था.

जिसमे इस जगह का दशम गुरु गोविंदसिंह जी ने वर्णन किया हुआ है कि उस जगह मेने अपने पूर्व जन्म मे दस सहस्र वर्ष पूजा तपस्या कि है. ज़ब उसने दोनो को सोचकर मिलाया तो सिखों कि नज़र मे यह जगह आई और यह उनका पवित्र तीर्थ स्थल बन गया. आज यहां सिख हज़ारों कि संख्या मे आते है दर्शन करते है. जून से लेकर अगस्त सितंबर तक गुरूद्वारे मे दर्शन है. रास्ता इतने समय ही खुलता है. दुर्गम रास्ता है. कागभीशुण्ड पर्वत भी आसपास ही है भ्यूंडार कै ठीक सामबे. कागभीशुण्ड पर्वत से निकलती हुयी नदी आकर लक्ष्मण गंगा मे गिरती है. इस जगह पर कौए आकर मरते है कागभीशुण्ड पर्वत पर. यह विशेष जगह है. यहां रामायण प्रसिद्ध कांग भीशुण्ड ऋषि रामायण कथा कहते है. जिसका वर्णन श्री राम चरितमानस मे सन्त कवि तुलसीदास ने किया है.

आज एहां एक सिख गुरुद्वारा बना हुआ है और बहुत से सिख हिंदू यात्री आकर शीश झुका कर जाते है. रहने कि कोई व्यवस्था नहि है. खाने पिने को गुरूद्वारे मे मिल जाता है. हिमालय कै दुर्लभ और उत्तराखंड राज्य कै राज्य पुष्प ब्रह्मकमल यहां मिल जाते है. तोड़ने पर दंड है. यहां से कर्णप्रयाग शहर दिखाई पड़ता है. यह भूमि नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व मे अति है कोर एरिया मे. यही पर फूलों कि घाटी है जिसमे अनेकों दुर्लभ पुष्प मिलते है. मौसम बहित ठंडा रहता है. घाघरिया से हेमकुंड कि चढ़ाई काठीन है.6 किलोमीटर चढ़ने मे आमतौर पर 4–5 घंटे लग जाते है सांस फूलती है अलग से. सीढ़ियां ऊँची ऊँची है. मेने यह यात्रा कर रखी है.

नारि पुष्प फूलों कि घाटी मे पाया जाता है किसी विशेष अंतराल पर ही खिलता है.

यहां पर एक लक्ष्मण मंदिर भी है. यह एक छोटा सा मंदिर है. येहा पर श्री राम कै चजाते भाई लक्ष्मण जी ने भी तप लिया था. तिब्बत कै साथ व्यापार करने वाले उत्तराखंड कै भूटिया व्यापारी इसं मदिर से होकर जाते आते थे चीन कै साथ सम्वन्ध ख़राब होने से पहले. अब इस व्यापार वाले रास्ते कै बारे मे जानकारी नहि है. इस झील से एक नदी निकलती है जिसका नाम है लक्ष्मण गंगा. आगे जाकर यह नदी पुष्पवती नदी मे मिलटी है घाघरिया पर. पुष्पवती नदी फूलों कि घाटी से बहती हुयी अति है.

घाघरिया मे दोनो नदी मिलकर लक्ष्मण गंगा ही कहलाती है.आगे गोविंदघाट पर यह नदी अलकनंदा मे मिलती है. अलकनंदा बद्रीनाथ से पहले हिमालय कै पर्वत श्रृंगो से ही निकलती है और यहा से आगे चलकर अलकनंदा विष्णु प्रयाग पर धोली गंगा मे मिलकर अलकनंदा ही कहलाती है. धौलीगंगा नीति घाटी से अति है इस पर मुख्य क़स्बा तपोवन है जो जोशीमठ से 15 किलोमीटर उत्तर मे है. अलकनंदा नदी अन्य स्थानों पर अलग अलग नदियों को समाहित कर देवप्रयाग मे भागीरथी कै साथ मिलकर गंगा बन जाती है. गंगा तो जीवनदायिनी सुरसरि पतित पावनी है जो नदी से अधिक माता मानी गयी है.

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