गन्ने से गुड़ कैसे बनता है? जानिए
हमने बचपन से अनेक कहावतें सुनी हैं गुड को लेकर – ‘गुड खाकर गुलगुले से परहेज’ या फिर ‘गूंगा क्या बताएगा गुड का स्वाद’. मगर इस गुड को बनाने का काम बड़ा चिपचिपा और धैर्यभरा है. गन्ने से गुड बनता है, यह बात हम सब जानते हैं, मगर गन्ने को तैयार होने में मानव-भ्रूण जितना ही समय लगता है, यह बात कम लोग जानते होंगे. जी हाँ, पूरे नौ महीने लगते हैं. आइये, देखते हैं गन्ने से गुड बनने की कहानी !
खेत से तैयार गन्ना लाता हुआ किसान
अक्सर गन्ने की फसल लेने वाले किसान ही अपने काम के लायक गुड बना लेते हैं, परन्तु बड़े पैमाने पर देसी गुड बनाने के लिए इसे गुड उत्पादकों को बेच दिया जाता है. सरगुजा जिले के कुछ गाँवों में गन्ना-उत्पादक किसान गुड बनाने वालों से कांट्रेक्ट कर लेते हैं. गन्ने की फसल तैयार होते ही वे अपने साजो-सामान के साथ खेत के पास डेरा जमा लेते हैं.
गन्ने का रस निकालने के लिए ‘पेराई की जा रही है.
गन्ने की पेराई करता हुआ व्यक्ति सामने से
गन्ने की ‘तोड़ाई’ के बाद वे गन्ने को साफ़ करके मशीनों से उसका रस निकाल कर बड़े-बड़े ड्रमों में भर लेते हैं,
ड्रम में भरा हुआ रस
रस निचुड़ने के बाद बचे हुए छिलकों को वहीँ पर सूखने के लिए फैला दिया जाता है, जो इंधन के काम आता है. वहीँ पास में ही ज़मीन में आयताकार गड्ढा खोदकर भट्ठी बनाई जाती है.
ज़मीन में खोदकर तैयार की गयी भट्टी
उस पर बड़ी-बड़ी चौकोर कढ़ाईयां रख कर आग जला दी जाती है.
भट्टी पर चढ़ाई जा रही कढाईयां
उबलता हुआ रस
रस को कढ़ाई में कुछ घंटे उबालने पर गुड जमने लगता है.
कढाई में उबलता हुआ गन्ने का रस
पकता हुआ गुड
इसमें चलनी चलाकर बीच-बीच में मैल हटा लेते हैं.
छलनी चलाकर ‘मैल’ निकालते हुए
गुड पकने की जांच उसे पानी में डालकर की जाती है. अच्छी तरह पकाने के बाद उसे ‘चट्टू’ से खरोंच कर मुट्ठी में लेकर लड्डू जैसा बनाकर सुखा लिया जाता है.
पक चुके गुड को ‘चट्टू’ से खुरेचते हुए
पककर तैयार गुड को लड्डू के रूप में बांधती हुई महिलाएं
बेचने के लिए सुखाया गया गोले के रूप में गुड