गौतम बुद्ध ने पेड़ के नीचे बैठकर ऐसा क्या किया कि उन्हें ज्ञान मिल गया?

बुद्ध ने पेड़ के नीचे बैठ कर ऐसा क्या किया? अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो आपके मन के एक और प्रश्न को भांप रहा हूँ। कि क्या मेरे भी पेड़ के नीचे बैठने और वही करने से मैं भी वैसा ज्ञान पा सकता हूँ?

छोटी-मोटी बात नहीं, बात सिद्धार्थ के बुद्ध बन जाने के बारे में है। इसलिए थोड़ा सा विस्तार में देखना ज़रूरी होगा।

सबसे पहली बात है जिज्ञासा। जिज्ञासा ही ज्ञान-तृष्णा का आधार है। आपने छोटे बच्चों को देखा होगा ना कि वे कितने सवाल करते हैं। बारिश क्यों होती है, साँप ज़हरीला है तो अपने ज़हर से क्यों नहीं मरता, मेरे माँ-बाप मुझे कहाँ से लाए थे, जैसे कितने सवाल वे सबसे करते रहते हैं। उनके लिए ये सब जानना पढ़ाई जैसा बोझिल काम नहीं है। अपितु उनके लिए ये नए संसारों के दरवाज़े खुलने जैसा है।
परंतु बहुत कम उम्र में ही उनकी जिज्ञासा पर वार कर दिया जाता है। सवाल मत करो। फालतू बातें मत पूछो, पढ़ाई पर ध्यान दो। जिज्ञासा को ख़त्म कर दिया जाता है। बचपन से ही करियर, नौकरी, विदेश, तंख्वाह के फेर में उन्हें डाल दिया जाता है। फिर भी बच्चे के दिमाग़ में आता है कि कोई आविष्कार कर दिया तो प्रसिद्धि और अरबों रुपए मिलेंगे। लेकिन इस प्रलोभन में बहुत अधिक अनिश्चितता जुड़ी हुई है। क्या पता कि कोई नया आविष्कार ना कर पाएँ? क्या पता कि नए अर्जित किए हुए ज्ञान का कितना आर्थिक मूल्य लगे या नहीं? इसलिए इन सब लालच की वजह से शोध करना संभव नहीं है। जिज्ञासा और उससे उत्पन्न ज्ञान-तृष्णा ही आपको उकसाती है जवाब ढूँढने के लिए।

न्यूटन को जिज्ञासा हुई कि चीज़ें नीचे क्यों गिरती हैं? बुद्ध ने जब वृद्ध, बीमार और मरते हुए लोगों को देखा तो वे भाव-विह्वल हो उठे। उन्हें जिज्ञासा हुई कि क्या ज़िंदगी से दुःख ख़त्म हो सकता है? जिज्ञासा के साथ ही उनके मन में भावुकता थी कि दुनिया का दुःख मैं कैसे दूर करूँ?

  1. दूसरी बात है बुनियादी ज्ञान। जो बिल्कुल ही निरक्षर है, वह भला किसके आधार पर शोध करेगा? जिसका इतिहास का ज्ञान अफवाहों से भरा है, जिसे देश की समस्याों का सही जायज़ा नहीं, जो सरकारी काम के आँकड़े और रिपोर्ट देखना नहीं जानता, वह उचित राजनीतिक विचार कहाँ से लाएगा? जिसमें भावुकता नहीं, वह अध्यात्म कहाँ से पाएगा?

बुद्ध ने राजमहल में तो केवल सुख और ऐश्वर्य देखा। जब वे बाहर निकले, तब उन्होंने दुनिया को पूर्ण रूप से देखा। सुख के साथ ही दुःख को भी देखा। तभी उन्हें आभास हुआ कि कोई समस्या है।

  1. तीसरी बात है तर्क़ करने की शक्ति। ऐसा क्यों…… फिर तो वैसा भी होना चाहिए…… लेकिन इसमें तो…. पर उस हिसाब से…..।

आपने कभी कोई भूल-भुलैया देखी होगी ना। आप एक छोर से शुरू करते हैं। आगे बढ़ते हैं, एक रास्ता बंद मिलता है। आप वापस आते हैं। दूसरे रास्ते पर बढ़ते हैं। और इस तरह से एक सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ते हुए भूल-भुलैया पार कर जाते हैं। यही बात सुडोकू पहेली, जिगसॉ पहेली, पुलिस के लिए कोई हत्या पहेली या जीवन की पहेली पर भी लागू होती है।

हमारे मस्तिष्क में अपार क्षमता छुपी हुई है। सोचने की, सवाल करने की, तर्क करने की और उससे निष्कर्ष और प्रमाण निकालने की। कुछ बुनियादी ज्ञान अगर हमें हो, तो हम अपने दिमाग़ में व्यतुपत्ति (derivation) के माध्यम से आगे बढ़ते हुए उच्च स्तर के ज्ञान पर पहुँच सकते हैं।

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