इस मंदिर में मछली के हड्डियों की होती है पूजा,वजह जानकर होश उड़ जाएंगे

भारत के मंदिरों के साथ अजब गजब किस्से है | मंदिरों में 33 कोटी के देवी देवताओ को पूजा जाता है | सबके अपने अपने आराध्य देव है | त्रिदेवो और उनके अवतारों को देवी के अलग अलग रूपों की पूजा होती है | पर आज हम जिस मंदिर की चर्चा करेंगे उसमे मत्स्य (मछली ) को पूजा जाता है | इस मंदिर में भक्त ज्यादातर मछुआरे है जो समुन्द्र में जाने से पहले इस मंदिर में शीश नवाने जरुर आते है |

मंदिर में एक बड़ी विशालकाय मछली की हड्डिया रखी गयी है जिसकी पूजा की जाती है |

कहाँ है यह मत्स्य देवी का मंदिर :
यह मंदिर गुजरात में स्थित है जिसका निर्माण 300 साल पुराना बताया जाता है | इस मंदिर को एक मछुआरे ने बनवाया था और रोज पूजा अर्चना करता था |

मत्स्य देवी का मंदिर बनने के पीछे की कहानी :
300 साल पहले यहा एक मछुआरा हुआ करता था जिसका नाम था प्रभु टंडेल | एक रात्रि उसने सपने में देखा की देवी माँ ने एक विशाल मछली का रूप धारण कर रखा है और वे तट पर आकर मृत्यु को प्राप्त जो जाती है |

सुबह उठने पर टंडेल उसी जगह पर गया जो जगह उसने सपने में देखी थी | वह पूरी तरह से अचरज में पड़ गया जब उसी जगह उसने एक मृत विशाल मछली को देखा | उसे समझ में आ गया की उसका स्वप्न सच्च था और यह मछली देवी माँ का ही रूप है | अब उसमे मतस्य के लिए मंदिर बनाने की लगन जगी और बस कुछ दिनों में उसने मतस्य देवी का मंदिर बनवा डाला और उस मछली की हड्डियों को मंदिर में रख कर पूजा करने लगा | यह बात उसने आस पास वाले लोगो को भी बताई | कुछ ने यकीन किया और कुछ मजाक में ले गये |

मत्स्य देवी ने दिखाए फिर चमत्कार :
प्रभु टंडेल और उसपे विश्वास रखने वाले नियमित रूप से इस मंदिर में पूजा करने लग गये | पर मत्स्य देवी के मंदिर का मजाक उड़ाने वालो की भी कमी नही थी | एक दिन उस गावं में महामारी फ़ैल गयी | हर तरफ त्राहिमान त्राहिमाम मचा हुआ था | अचानक इस गावं पर आये इस विपत्ति के बारे में कोई समझ नही पा रहा था | प्रभु टंडेल और उसके साथी फिर भी नियमित मस्त्य देवी की पूजा करते रहे | उनकी भक्ति भावना को देखकर सभी गावं वाले इस मंदिर में महामारी से बचने की गुहार लगाने लगे | चमत्कारी रूप से धीरे धीरे महामारी इस गावं से चली गयी और लोगो में मत्स्य देवी के प्रति अपार श्रद्दा बढ़ गयी |

आज तो हालत ऐसे है की मछुआरे समुद्र में जाने से पहले इस मंदिर में शीश जरुर झुकाते है | हर साल अंतिम नवरात्रि वाले दिन इस मंदिर में विशाल मेला भरता है |

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