Could Ravana lift Angad's leg?

रावण के करीब आते ही क्‍यों घास का तिनका उठा लेती थीं माता सीता

नवरात्र के 9 दिनों के पर्व का संबंध केवल मां दुर्गा के 9 स्‍वरूपों से ही नहीं बल्कि प्रभु श्रीराम से भी है. जी हाँ, आपको बता दें कि शारदीय नवरात्र के अवसर देश भर में जगह-जगह राम लीला का आयोजन होता है और फिर राम नवमी धूमधाम से मनाई जाती है. ऐसे में दशहरे के दिन लंकापति रावण का दहन होता है और इस अवसर पर हम आपके लिए लेकर आए हैं रामायण का एक रोचक किस्सा जिसमे हम आपको बताएंगे माता सीता रावण को देखते ही अपने हाथ में घास का तिनका उठा लेती थीं.

आइए जानते हैं.

रावण जब सीताजी का हरण करके लंका ले गया, तब माता सीता अशोक वाटिका में वट व्रक्ष के नीचे बैठकर केवल प्रभु श्रीराम का स्‍मरण और चिंतन करतीं रहती थीं. रावण बार-बार आकर सीताजी को धमकाता था लेकिन वह कुछ नहीं बोलती थीं. यहां तक कि रावण ने श्रीराम के वेश में आकर माता सीता को भ्रमित करने की कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ. रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष में पहुंचा तो मंदोदरी जो यह सब पहले से जानती थीं, बोलीं आपने तो राम का वेश भी धरा था, फिर क्या हुआ. रावण बोला, ‘जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी.’ रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जगत जननी मां को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण भी कैसे समझ पाता, लेकिन लंकापति रावण भी कहां हार मानने वाला था.

रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था। उसने फिर से माता सीता के करीब आने का प्रयास किया. लेकिन जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण भी कैसे समझ पाता ! रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो की मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर घूर कर देखने लगती हो, क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है ?

रावण के इस प्रश्न को सुनकर माता सीता बिलकुल चुप हो गईं और उनकी आंखों से आसुओं की धार बह पड़ी. शायद वह मन ही मन उन खूबसूरत पलों के बारे में सोच रही होंगी जब श्रीराम से विवाह करके अयोध्‍या आईं थीं और नई-नवेली दुल्‍हन के रूप में आदर सत्‍कार हुआ था. माता सीता का बड़े आदर के साथ ग्रह प्रवेश हुआ और उत्‍सव मनाया गया. उस वक्‍त एक परंपरा निभाई गई और उस परंपरा में उस घास का तिनके का रहस्‍य छिपा हुआ है. नववधू जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर परिवार के सदस्‍यों के बीच मिठास बनी रहे. इसलिए सीताजी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ सहित चारों भ्राता और ऋषि संतों को परोसी.

इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथो से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार राजा दशरथ सहित चारो भ्राता और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे, माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तल सम्हाली, सीता जी देख रही थी, ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया, माँ सीता जी ने उस तिनके को देख लिया, लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया,

माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर जो देखा, तो वो तिनका जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया, सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी का यह चमत्कार को देख रहे थे, फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष मे चले गए और माँ सीता जी को बुलवाया !

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